एक आठ-नौ साल का लड़का हमेशा अपनी आँखें आसमान की तरफ रखता; ऊपर उड़ने वाले वायुयानों की बस एक झलक पाने की उम्मीद में। वह परीक्षण के लिए उड़ते जेट विमानों की गर्जना सुनकर घर से बाहर भाग जाता। बिना पलक झपकाए उन्हें घूरता रहता; वह मानव निर्मित उस पक्षी को अपनी छोटी सी मुट्ठी में क़ैद करने की कोशिश करता।
उसे हवाई जहाजों से लगाव उतना ही था जितना भगत सिंह को चंद्रमा से। इस लड़के की आँखों में एक सपना था, उनमें से एक बनने का सपना, वही विमान उड़ाने का सपना जिसे वह हर दिन देखा करता था। वह लड़का था परमवीर निर्मलजीत सिंह सेखों। जब दिल में साहस और आँखों में महत्वाकांक्षा हो; तो सब कुछ संभव है। निर्मलजीत सिंह सेखों ने देश के सम्मान के लिए न सिर्फ दुश्मन की जान ली, बल्कि अपने प्राणों की भी देश रक्षा में आहुति दे दी। अप्रतिम बुद्धि और शौर्य के दम पर अपनी बहादुरी का परचम लहराने के लिए निर्मलजीत सिंह सेखों को सर्वोच्च सैन्य सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया। वह यह सम्मान पाने वाले भारतीय वायु सेना के एकमात्र सदस्य हैं।
सेखों
निर्मलजीत अपने परिवार में इकलौते नहीं थे जिन्होंने देश को गौरवान्वित किया, उनके पिता श्री त्रिलोक सिंह सेखों ने भी भारतीय वायु सेना में सेवा की और बाद में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए। 17 जुलाई 1945 को पंजाब के लुधियाना के ईसरवाल गाँव में त्रिलोक जी और हरबंस कौर के घर उनके बेटे निर्मलजीत का जन्म हुआ। वायु सेना के साथ निर्मल आकर्षण किसी से छिपा नहीं था। उनका गाँव लुधियाना के पास वायु सेना के अड्डे हलवारा के आसपास क्षेत्र में स्थित था और उसी गाँव के घर के दरवाज़े के बाहर खड़े होकर निर्मल ने वायुसेना में जाने का सपना देखना शुरू किया।
निर्मलजीत पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। उन्होंने लुधियाना के पास खालसा विद्यालय, अजीतसर मोई में पढ़ाई की। फिर बारहवी पास करने के बाद, उन्होंने 1962 में आगरा के दयालबाग इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ उनके जीवन ने नया मोड़ लिया; वे खुद को इंजीनियर बनते नहीं देख पा रहे थे। उनके अनुसार, वे सिर्फ देश की रक्षा करने के पेशे के साथ ही न्याय कर सकते थे। वे सेना के अनुभवों की उन सभी कहानियों को याद करने लगे जो उनके पिता उन्हें सुनाया करते थे। उनके पिता जीवन में उनकी प्रेरणा, शक्ति और मार्गदर्शक थे। अब वे अपनी कहानी बनाना चाहते थे; वे अपना भाग्य खुद लिखना चाहते थे। यही कारण था कि उन्होंने भारतीय वायु सेना में शामिल होने के लिए इंजीनियरिंग बीच में ही छोड़ दी। परीक्षा में उत्तीर्ण होने में उनकी मेहनत और दृढ़ निश्चय ने उनकी बहुत मदद की। निर्मलजीत को 4 जून 1967 को एक लड़ाकू पायलट के रूप में भारतीय वायु सेना में नियुक्त किया गया। लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी, उनके सामने एक लंबा और कठिन रास्ता था और वायु सेना का कठोर प्रशिक्षण उसका एक हिस्सा था। एक साल के लंबे प्रशिक्षण ने उन्हें वायु सेना की साहस और कर्तव्य की भाषा सीखने में मदद की। इसने उन्हें स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के पंखों को फैलाने में मदद की।
उनका जीवन सहजता से चल रहा था; सम्मान और प्यार जो उन्हें देश से प्राप्त हो रहा था, सेखों जैसे सरल स्वाभाव वाले व्यक्ति के लिए किसी सपने से कम नहीं था। उसके लिए राष्ट्र की सेवा कर पाना अधिक सम्मान की बात थी; वे अपने देश की सुरक्षा के लिए ऊंची उड़ान भर रहे थे। दूसरी ओर उनके पिता, अपने बेटे की उड़ानों में अपने पुराने दिनों को जी रहे थे। 1971 में, निर्मलजीत मंजीत कौर के साथ विवाह सूत्र में बँधे। निर्मलजीत अपनी किस्मत खुद लिख रहे थे, वे अपनी कहानी के नायक थे लेकिन उन्हें यह नहीं पता था की वे खुद को राष्ट्रीय नायक बनने के लिए तैयार कर रहे थे।
गलियारा
स्वतंत्रता के संघर्ष ने कुछ कभी न भरने वाले घाव दिए और कुछ कभी न भूली जाने वाली यादें।
बांग्लादेश; बंगाल की खाड़ी के आँचल में दुबका एक छोटा सा देश । आज जिस बांग्लादेश को हम जानते हैं, वह आजादी से पहले बंगाल का हिस्सा था और आजादी के ठीक बाद पूर्वी पाकिस्तान था। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में भाषा, भोजन, भौगोलिक परिस्थितियों और आर्थिक स्थिति के आधार पर अनगिनत विविधताएँ थीं; उस एक राष्ट्र के दो भाग एक दूसरे से लगभग 2000 किलोमीटर दूर थे और भारत वो दूरी मिटाने वाला एकमात्र गलियारा था। इस देश की आजादी के संघर्ष की कहानी अन्य दोनों देशों की तुलना में अधिक लंबी और दर्द भरी है। पश्चिमी पाकिस्तान ने हमेशा पूर्वी पाकिस्तान की जरूरतों, आवश्यकताओं, आवाज और अस्तित्व की अवहेलना की। यही अवहेलना आखिरकार ‘बांग्लादेश मुक्ति युद्ध’ के रूप में सामने आई। इस युद्ध को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान ने कई निर्दोष बांग्लादेशियों को मौत के घाट उतार दिया। पाकिस्तान के इस रवैये ने भारत को उकसाया और भारत चुप चाप युद्ध के लिए खुद को तैयार करने लगाI
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने युद्ध की शुरुआत की। 16 दिसंबर 1971 को भारत की जीत के साथ युद्ध समाप्त हो गया। संघर्ष के इन 13 दिनों ने पाकिस्तान को दुनिया में अपना वास्तविक स्थान दिखाया और एक स्वतंत्र बांग्लादेश को जन्म दिया। युद्ध भारत के पूर्वी मोर्चे पर शुरू हुआ लेकिन पाकिस्तान ने भारतीय सेनाओं को विचलित करने के लिए पश्चिमी मोर्चे पर भी युद्ध शुरू कर दिया। लेकिन हमारे बहादुर सैनिक किसी भी परिस्तिथी का सामना करने के लिए तैयार थे। भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों अंगों; सेना, नौसेना और वायु सेना ने युद्ध में भाग लिया और केवल एक ही चीज़ को सुनिश्चित किया; विजय। भारतीय सेना के कुछ सैनिक पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की हरी भरी भूमि पर लड़ रहे थे, तो कुछ जैसलमेर की बंजर भूमि परI नौसेना ने बंगाल की खाड़ी से होते हुए हिन्द महासागर और अरब सागर तक पूरे प्रायद्वीप की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया। भारतीय वायु सेना ने हमारे सुंदर और विविध राष्ट्र के ऊपर नीले आकाश का भार संभाला।
“फ्लाइंग बुलेट”
निर्मलजीत भारतीय वायु सेना के नंबर 18 स्क्वाड्रन में शामिल हुए, जिसे फ्लाइंग बुलेट भी कहा जाता हैI वे श्रीनगर में स्थित नैट टुकड़ी के पायलट थेI 1948 में हुए अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत, श्रीनगर में कोई वायु रक्षा विमान नहीं थे, लेकिन भारत के पाकिस्तान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध 1971 में पूरी तरह से समाप्त हो गए। सेखों और अन्य पायलट इलाके से परिचित नहीं थे, लेकिन उनके उत्साह और साहस ने उन्हें जीत का आश्वासन दिया। सेखों अन्य सैनिकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे और सभी उन्हें प्यार से “ब्रदर” बुलाते थेI
कश्मीर की खूबसूरत घाटी दिसंबर महीने के मध्य में लगातार बर्फबारी और सर्दियों का आनंद ले रही थी। बर्फ ने गुलाबों की जगह ले ली; शालीमार उद्यान हरी घास के कालीन के बजाय बर्फ की मोटी चादर से ढका थाI डल से लेकर लाल चौक तक कहवा की भीनी-भीनी सुगंध आ रही थीI लेकिन घाटी को बच्चों की हँसी, महिलाओं की गपशप और पुरुषों की बातचीत याद आ रही थी। घाटी शांत थी, लेकिन वह अपने पड़ोसी राज्यों, पश्चिम बंगाल और राजस्थान की चीखें सुन सकती थी। युद्ध अपने चरम पर था। घाटी ने भारतीय वायु सेना के बहादुर सैनिकों के लिए अपनी बाहें खोलीं, वह एक और हमले का गवाह बनने के लिए तैयार थी क्योंकि वह जानती थी कि भारतीय सशस्त्र बलों के बहादुर सैनिक उसकी गरिमा और प्रतिष्ठा की रक्षा करेंगे। 14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयरफ़ील्ड पर PAF बेस पेशावर से 26 स्क्वाड्रन के छह पाकिस्तानी F-86 जेट द्वारा हमला किया गया। फ्लाइंग ऑफिसर सेखों उस समय ड्यूटी पर थे।
उन्हें घुसपैठ के बारे में एक संदेश मिला और तभी पहले विमान ने हमला किया। सेखों और उनके बहुत अच्छे दोस्त और वरिष्ठ अधिकारी फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुम्मन ने इस हमले के बारे में आलाकमान को जानकारी दी। स्थिति गंभीर थी, उन्होंने कुछ मिनटों के लिए जवाब का इंतजार किया लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। घुम्मन और सेखों ने कार्रवाई करने का फैसला किया। घुम्मन लीड में थे और सेखों उनके पीछे। बम लगातार रनवे पर गिर रहे थे; बमों से उड़ती धूल साफ़ होने तक उन्हें इंतज़ार करना पड़ा। जैसे ही रनवे उड़ान के लिए तैयार हुआ, सेखों और घुम्मन ने एक और मिनट बर्बाद किए बिना अपने फॉलैंड नैट लड़ाकू विमानों में बैठ गए। भारत के सिर्फ 2 विमान थे और पाकिस्तान के छह, लेकिन यह एकमात्र चुनौती नहीं थी, कोहरे से भरे अज्ञात इलाके उन्हें समान रूप से चुनौती दे रहे थे। जैसे ही उन्होंने उड़ान भरी सेखों ने सबसे पहले दुश्मन के एक विमान पर आँखें टिकाई। वहीं दूसरी ओर उड़ान भरते ही घुम्मन ने अपने विंगमैन के साथ सम्बन्ध खो दिया, उन्हें सेखों को अकेला छोड़कर वापस जाना पड़ा। लड़ाई बहुत कठिन थी, अब एक का मुकाबला छह से था। सेखों को अपना काम अच्छी तरह मालूम था; उन्होंने एक पाकिस्तानी सैबर जेट पर सीधा प्रहार किया और तुरंत ही दुश्मन के एक और विमान को भी अपना निशाना बनाया। हमले इतने तेज थे कि उन्होंने पाकिस्तान के सैनिकों को अन्दर तक हिला दिया।
लुका छुपी
सेखों द्वारा किए गए हमलों ने पाक सैनिकों को यह स्पष्ट कर दिया कि वे अपने राष्ट्र के सामने ढाल की तरह खड़े थे। पाकिस्तानी सैनिक अब उनके पीछे थे, वे पहले भारत की ढाल को चकनाचूर करना चाहते थे। घाटी में कई मोड़ थे और कोहरे के कारण कुछ भी स्पष्ट रूप से देखना मुश्किल हो गया था। लेकिन सेखों देश के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे। कुछ देर सेखों का पीछा करने के बाद, पाकिस्तान के एक सैबर जेट ने सेखों के विमान को टक्कर मार दी। उन्हें तुरंत वापस आने का आदेश मिला। आदेश पाकर सेखों बेस की तरफ रवाना हो गए, कुछ समय के लिए उनका विमान सीधा उड़ान भर रहा था, फिर नियंत्रण प्रणाली की विफलता के कारण विमान अपना संतुलन खो पलट गया । उन्होंने विमान को वापस चलाने का एक अंतिम प्रयास किया, जो असफल रहा।
निर्मलजीत सिंह सेखों का विमान दुर्भाग्यवश दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वे शहीद हो गए, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। दुश्मन शहर और उसके हवाई क्षेत्र पर हमला करने के अपने मिशन को पूरा नहीं कर सके; वे तुरंत पीछे हट गए और घटनास्थल से भाग गए। बेस से कुछ मील की दूरी पर विमान का मलबा मिला।
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों ने अंतिम सांस तक लड़ते हुए, शानदार उड़ान विशेषज्ञता का मापदंड स्थापित करके, कर्तव्य की पुकार का सम्मान करके और राष्ट्र के बारे में सोचकर हमें सच्ची वीरता और शौर्य का रास्ता दिखाया । एक के सामने छह की मुठभेड़ के बीच उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल ने उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता पदक का हकदार बनायाI उनकी गिनती न सिर्फ भारतीय वायु सेना के बल्कि भारतीय सशस्त्र बालों के सबसे वीर सैनिकों में होती हैI हम परमवीर चक्र से सम्मानित परमवीर फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों के पराक्रम , शौर्य और शहादत को सलाम करते हैंI