धन सिंह थापा, परमवीर चक्र 1962
श्री धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था। उनके पिता श्री पी. एस. थापा थे। श्री
थापा को 8 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में 28 अगस्त 1949 को शामिल किया गया था। मेजर धनसिंह थापा
परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय सैनिक थे। इन्हे यह सम्मान सन 1962 मे मिला। वे अगस्त 1949 में
भारतीय सेना की आठवीं गोरखा राइफल्स में अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे। भारत द्वारा अधिकृत विवादित क्षेत्र में
बढ़ते चीनी घुसपैठ के जवाब में भारत सरकार ने “फॉरवर्ड पॉलिसी“ को लागू किया। योजना यह थी कि चीन के सामने कई
छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना की जाए। चीन-भारतीय युद्ध अक्टूबर 1962 में शुरू हुआय 21 अक्तूबर को, चीनी ने पैनगॉन्ग
झील के उत्तर में सिरिजैप और यूल पर कब्जा करने के उद्देश्य से घुसपैठ शुरू की थी।
पांगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर 8 गोरखा राइफल्स की प्रथम बटालियन द्वारा स्थापित एक पोस्ट थी जो मेजर धन सिंह
थापा की कमान में थी। जल्द ही यह पोस्ट चीनी सेनाओं द्वारा घेर लिया गया था। मेजर थापा जी और उनके सैनिकों ने इस
पोस्ट पर होने वाले तीन आक्रमणों को असफल कर दिया। श्री थापा सहित बचे लोगों को युद्ध के कैदियों के रूप में कैद कर
लिया गया था।
अपने महान कृत्यों और अपने सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने के उनके प्रयासों के कारण उन्हें परमवीर चक्र से
सम्मानित किया गया।
भारत-चीन युद्ध
हिमालय क्षेत्र में विवादित सीमाओं पर लंबे समय से भारत और चीन के बीच असहमति थी। विवादित क्षेत्र में बढ़ते चीनी
घुसपैठ का सामना करने के लिए, भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनसे निपटने के लिए रणनीतियों के बारे में
पूछा। हालांकि, भारतीय सेना द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने “फॉरवर्ड पॉलिसी“
नामक एक नौकरशाह द्वारा प्रस्तावित एक योजना को मंजूरी दी जिसमे चीनी सीमा के क्षेत्र में कई छोटी-छोटी पोस्टों की
स्थापना के लिए कहा गया था।
चीनी घुसपैठ के खिलाफ सार्वजनिक आलोचना में गंभीर वृद्धि के कारण श्री नेहरू ने सेना की सलाह के खिलाफ “फॉरवर्ड
पॉलिसी“ को लागू कर दिया। चीन को भौगोलिक लाभ प्राप्त था और यह सेना के लिए चिंता का विषय था। अतिरिक्त चीनी
हमले के समय कई छोटी-छोटी पोस्टों को बनाए रखना असंगत था। इस पर श्री नेहरू ने यह मान लिया था कि चीनी हमला
नहीं करेंगे। लेकिन चीन ने चीन-भारत युद्ध की शुरुआत कर दी।
युद्ध बंदी
युद्ध के दौरान श्री थापा सहित बचे सैनिकों को युद्ध बंदियों के रूप में चीनी सेना द्वारा कैद कर लिया गया। मेजर थापा जी के
साथ युद्ध के एक कैदी के रूप में बुरा व्यवहार किया गया। उन्हें कई दंडों का सामना करना पड़ाय सबसे पहले चीनी सैनिकों
की हत्या के लिएय और दूसरा, भारतीय सेना और भारत सरकार के खिलाफ बयान देने से इनकार करने के लिए। युद्ध की
समाप्ति पर उन्हें मुक्त कर दिया गया था।
रोचक तथ्य
चुशूल चौकी पर कब्जे का समाचार जब सेना मुख्यालय में पहुँचा, तो सबने मान लिया कि वहाँ तैनात मेजर धन सिंह थापा और
शेष सब सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये होंगे। देश भर में मेजर थापा जी और उनके सैनिकों की वीरता के किस्से सुनाये जाने
लगे। 28 अक्तूबर को जनरल पी.एन. थापर ने मेजर थापा जी की पत्नी को पत्र लिखकर उनके पति के दिवंगत होने की सूचना
दी। परिवार में दुःख और शोक की लहर दौड़ गयीय पर उनके परिवार में परम्परागत रूप से सैन्यकर्म होता था, अतः सीने
पर पत्थर रखकर परिवारजनों ने उनके अन्तिम संस्कार की औपचारिकताएँ पूरी कर दीं।
सेना के अनुरोध पर भारत सरकार ने मेजर धनसिंह थापा को मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ देने की घोषणा कर दीय लेकिन
युद्ध समाप्त होने के बाद जब चीन ने भारत को उसके युद्धबन्दियों की सूची दी, तो उसमें मेजर थापा जी का भी नाम था। इस
समाचार से पूरे देश में प्रसन्नता फैल गयी। उनके घर देहरादून में उनकी माँ, बहन और पत्नी की खुशी की कोई सीमा न थी।
इसी बीच उनकी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया था।
10 मई, 1963 को भारत लौटने पर सेना मुख्यालय में उनका भव्य स्वागत किया गया। दो दिन बाद 12 मई को वे अपने घर
देहरादून पहुँच गयेय पर वहाँ उनका अन्तिम संस्कार हो चुका था और उनकी पत्नी विधवा की तरह रह रही थी।
अतः गोरखों की धार्मिक परम्पराओं के अनुसार उनके कुल पुरोहित ने उनका मुण्डन कर फिर से नामकरण किया। इसके बाद
उन्हें विवाह की वेदी पर खड़े होकर अग्नि के सात फेरे लेने पड़े। इस प्रकार अपनी पत्नी के साथ उनका वैवाहिक जीवन फिर से
प्रारम्भ हुआ।
सम्मान
देश के लिए अपने महान कार्यों और अपने सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने के उनके प्रयासों के कारण उन्हें भारत
सरकार द्वारा वर्ष 1962 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, किन्तु वर्ष 1963 में उनके जीवित वापस आ
जाने पर, आवश्यक संशोधन किये गए।
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जय हिन्द!